भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन काल से ही हिंदी को संपर्क एवं राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया था। यह इसलिए नहीं कि हिंदी एकमात्र और सर्वप्रमुख भारतीय भाषा थी,बल्कि उस समय विदेशी शासन व्यवस्था सहित समस्त विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना हमारा प्रमुख लक्ष्य था और विदेशी भाषा अंग्रेजी के स्थान पर किसी सर्वसम्मत भारतीय भाषा के प्रयोग की आवश्यकता महसूस की गई थी। संपूर्ण भारतवर्ष में हिंदी के बोलने एवं समझने वालों की संख्या तथा इसके विस्तार को ध्यान में रखकर हिंदी को उस समय राष्ट्रभाषा कहा गया। इसके अतिरिक्त हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने की पृष्ठभूमि में सबसे महत्वपूर्ण कारण यह रहा कि हिंदी पूरे भारत को जोड़ने वाली भाषा रही है। भारतीय मनीशियों ने जिस एकीकृत भारत का स्वप्न संजोया उसे मूर्तरूप देने के लिए सक्रिय प्रयास भी किए। राजनीतिक एकता भले पिछली शताब्दी की देन है,परन्तु सांस्कृतिक दृष्टि से भारत सदियों से एक राष्ट्र रहा है।
पर्यटन,तीर्थाटन,व्यापार-वाणिज्य सहित अन्य उद्देष्यों से भारत के एक प्रांत के निवासी,यहॉं तक कि अशिक्षित और अल्प शिक्षित लोग भी,दूसरे प्रांतों की यात्रा करते रहे हैं। उस समय टूटी-फूटी हिंदी के माध्यम से ही वे अपने को पूरे भारत में अभिव्यक्त करते रहे हैं। इस प्रकार राष्ट्रीय एकता के महान लक्ष्य की पूर्ति में हिंदी हमेशा से ही साधिका रही है। हिंदी के इसी विशेष गुण के कारण भी लोगों ने इसे राष्ट्रभाषा कहा और हृदय से अपनाया,अन्यथा भारत की समस्त भाषाएं राष्ट्रीय भाषा अथवा राष्ट्र की भाषाएं हैं।
स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद भारतीय संविधान के सुधी प्रणेताओं ने भारत सरकार के सरकारी कामकाज की भाषा के विषय में व्यापक विचार-विमर्श किया। 14 सितंबर 1949 को भारत की संविधान सभा ने विस्तृत विचार-विमर्श के बाद हिंदी को राजभाषा के रूप में मान्यता प्रदान की।
प्रथम गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान के लागू हो जाने के बाद से हमारा यह संवैधानिक कर्त्तव्य तथा नैतिक जिम्मेदारी है कि अपनी राष्ट्रभक्ति एवं राष्ट्र धर्म का पालन करते हुए हम पवित्र ग्रंथ भारतीय संविधान,राष्ट्रीय प्रतीक तिरंगा ध्वज,राष्ट्रगान जनगणमन एवं राष्ट्रगीत बंदेमातरम् की तरह राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति पूर्ण श्रद्धा एवं सम्मान व्यक्त करें तथा इसके प्रयोग के लिए किये जा रहे उपायों को लागू करने में अपना सहयोग दें।
01 अप्रेल 2003 में पश्चिम मध्य रेलवे के गठन के साथ ही इस रेलवे पर रेल संचालन संबंधी महत्वपूर्ण नवीन गतिविधियों के साथ-साथ भारत सरकार की राजभाषा नीति के कार्यान्वयन का कार्य भी शुरू हुआ।
पश्चिम मध्य रेल,भारतीय रेल का हृदय स्थल कहलाता है। मुख्यालय सहित इसके क्षेत्राधिकार में पड़ने वाले तीनों मंडल तथा दोनों कारखाने राजभाषा प्रयोग-प्रसार के लिए केक्षेत्र में आते हैं। हमारे अधिकांश ग्राहक हिंदी भाषी हैं। अतः न केवल संवैधानिक व्यवस्थाओं बल्कि ग्राहक संतुष्टि की दृष्टि से भी हिंदी का प्रयोग हमारे लिये अपरिहार्य है। हमारा एक सकारात्मक पक्ष यह भी है कि हमारे अधिकांश अधिकारियों एवं कर्मचारियों की मातृभाषा हिंदी है और वे सभी हिंदी कार्य में सक्षम हैं। अतः उन्हें राजभाषा में कार्य करने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं है।
पश्चिम मध्य रेल का सौभाग्य रहा है कि इसके गठन के साथ ही इसे कुशल नेतृत्व प्राप्त हुआ है। फलस्वरूप अल्प समय में ही इसने रेल संचालन के साथ-साथ राजभाषा प्रयोग-प्रसार केक्षेत्र में नये आयाम स्थापित किये हैं। इस रेल पर पदस्थ महाप्रबंधकों के कुशल नेतृत्व व मुख्य राजभाषा अधिकारियों के मार्गदर्शन में हम राजभाषा प्रयोग-प्रसार के क्षेत्र में उत्तरोतर प्रगति की ओर अग्रसर हैं। हमारे अधिकारी एवं कर्मचारी गृह मंत्रालय तथा रेल मंत्रालय की विभिन्न पुरस्कार योजनाओं में लगातार सफलताएं अर्जित कर पश्चिम मध्य रेलवे का नाम रोशनकर रहे हैं।
भारत सरकार की राजभाषा नीति का आधार सद्भावना, प्रेरणा तथा प्रोत्साहन की है किंतु राजभाषा संबंधी अनुदेषों का अनुपालन उसी प्रकार दृढ़तापूर्वक किया जाना अपेक्षित है जिस प्रकार अन्य सरकारी अनुदेषों का पालन किया जाता है। अतः पश्चिम मध्य रेल के अधिकारियों एवं कर्मचारियों से हमारा विनम्र आग्रह है कि वे दिन-प्रतिदिन के सरकारी कामकाज में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग कर अपना संवैधानिक एवं नैतिक दायित्व का निर्वहन करें। साथ ही इस रेलवे पर भारत सरकार की राजभाषा नीति के कार्यान्वयन में हमें सहयोग प्रदान करें। |